Madhu varma

Add To collaction

लेखनी कविता - उषा की लाली - नागार्जुन


उषा की लाली / नागार्जुन

उषा की लाली में
अभी से गए निखर
हिमगिरि के कनक शिखर

आगे बढ़ा शिशु रवि
बदली छवि, बदली छवि
देखता रह गया अपलक कवि
डर था, प्रतिपल
अपरूप यह जादुई आभा
जाए ना बिखर, जाए ना बिखर,

उषा की लाली में
भले हो उठे थे निखर
हिमगिरी के कनक शिखर


   1
0 Comments